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127K views · 8.8K comments | Shraddha TV Satsang || 12-03-2025 || Episode: 2862 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang | Shraddha TV Satsang || 12-03-2025 || Episode: 2862 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang | By Spiritual Leader Saint Rampal Ji | संत रामपाल जी महाराज एक ऐसे महान संत जिन्होंने अपनी सद्भक्ति, तत्व ज्ञान, करुणा और सेवा के बल पर समाज में नई मिसाल कायम की है. संत रामपाल जी महाराज की अगुवाई में उनके सभी सतलोक आश्रमों से समाज कल्याण के अद्भुत कार्यों ने समाज को सुनहरे भविष्य की एक नई उम्मीद दिखाई है. संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद लाखों लोगों की लाइलाज बीमारियां. जैसे कैंसर, एड्स आदि हुई संत जी के ज्ञान से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने लाखों unit रक्तदान किया संत जी ने लाखों बहन बेटियों का दहेज मुक्त विवाह करवाया संत जी ने लाखों लोगों का नशा छुड़वाया करोड़ों उजड़े परिवार बसे. संत जी के आश्रमों में समागम के दौरान निःशुल्क नेत्र चिकित्सा, दन्त चिकित्सा प्रदान की जाती है. संत रामपाल जी महाराज द्वारा समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से बड़े स्तर पर वृक्षारोपण किया जाता है. संत जी ने ज़रूरतमंदों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिए ambulance सेवा शुरू की संत जी अपने अनुयायियों को देहदान के लिए प्रेरित करते हैं जिससे मानवता की सेवा और चिकित्सा क्षेत्र में सुधार हो सके. संत रामपाल जी महाराज के सभी आश्रमों में हर रोज निशुल्क भंडारा आयोजित किया जाता है. जहाँ हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं. संत रामपाल जी महाराज के आश्रम में हजारों बुजुर्गों को सम्मान और प्यार के साथ जीवन जीने का अवसर मिलता है. उनके खाने, रहने और स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी. संत रामपाल जी महाराज उठाते हैं. अनाथ बच्चों के लिए संत रामपाल जी महाराज के सभी आश्रम किसी वरदान से कम नहीं. यहाँ उन्हें शिक्षा, संस्कार और भविष्य के लिए बेहतर अवसर प्रदान किए जाते हैं. चाहे बाढ़ हो, भूकंप या महामारी. संत रामपाल जी महा और उनके अनुयायी हमेशा ही जरूरतमंदों के लिए सबसे आगे खड़े रहते हैं. कोविड महामारी के दौरान संत रामपाल जी महाराज के आश्रमों से करोड़ों लोगों के लिए भोजन, दवाइयाँ और जीवन रक्षक सामग्रियां उपलब्ध कराई गई. चाहे गरीब की मदद हो या किसी शोषित और पीड़ित वर्ग के हक और सम्मान की लड़ाई संत रामपाल जी महाराज ने हमेशा ही उनकी दबी आवाज को सरकारों तक पहुँचाया है. और उन्हें न्याय दिलवाने में अहम भूमिका अदा की है समाज में आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों के प्रति जागरूकता लाने में संत Rampal जी महाराज हर कदम पर मानवता के सच्चे सेवक साबित हुए हैं संत Rampal जी महाराज का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा वही है जो निस्वार्थ भाव से की जाए आइए हम भी इस महान सेवा के कार्य में इस महान संत से जुड़े और संत Rampal जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन को बनाया। पवित्र श्रीमद्भागवत गीता पवित्र चारों वेद, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाइबिल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब, पवित्र, कबीर साहिब की वाणी में छुपे हुए गूढ़ रहस्य अर्थात तत्व को जानने के लिए कृपया अवश्य सुनिए जगतगुरु तत्वदर्शी, संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन। नमस्कार दर्शकों ये कहानी है छत्तीसगढ़ Rajnandgaon जिले की एक ऐसी महिला की जो असहनीय शारीरिक पीड़ा का सामना कर रही थी इन्होंने अपनी शारीरिक पीड़ाओं से निजात पाने के लिए ना जाने कहाँ-कहाँ उम्मीद लगाई लेकिन हर जगह इन्हें निराशा ही हाथ लगी। आखिर इनके जीवन में चल रही परेशानियों से इन्हें कैसे छुटकारा मिला? और ये भी जानते हैं कि इन्होंने कैसे संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ग्रहण की। और क्या नाम दीक्षा लेने के बाद इन्हें कोई लाभ प्राप्त हुए आइए अब सुनते हैं ललिता जी की सच्ची कहानी उन्हीं की जुबानी। नमस्कार जी सत साहिल जी क्या नाम है जी आपका? नरता दासी बहन जी आप कहाँ से हैं? छत्तीसगढ़ राजनांद गाँव से। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा आपने कब ली? दो हजार तेरह में जी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने से पहले आप क्या भक्ति साधनाएं करती थी? मैं कबीर शैफ को ही मानती थी और बनारस से विजयदास शास्त्री से नाम भी चली थी जी तो फिर आप रामपाल जी महाराज की शरण में कैसे आएं? वो भक्ति करते-करते हमें कोई लाभ होता नहीं था. हम मेरे सर में इतना दर्द होता था, मेरी शादी के बाद मैं, मेरे हस्बैंड आर्मी में हैं. तो मुझे रांची ले के गए थे वहाँ पे. वहाँ पे वहाँ आर्मी के डॉक्टर को बहुत दिखाया और इधर आई तो तांत्रिकों को भी बहुत दिखाया. मेरे सर में इतना दर्द होता था, मैं मानसिक परेशानी भी होता था, मेरे को. मैं कोई काम नहीं कर पाती थी. इतना टेंशन में मेरे हाथ-पैर ना हिलता था. तो मेरे हस्बैंड भी परेशान थे क्या करें इतना दिखाते हैं फिर भी ठीक नहीं होता करके उसके बाद मेरी बहन ने बताया कि कोई सत्संग में चैनल में सत्संग आता है वो संत बहुत अच्छा है आप इधर आ के देखो संत रामपाल जी महाराज के बारे में तो हम गए वहाँ पे संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लिए संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद आपको क्या-क्या लाभ मिले? पहला तो मेरा जो सर दर्द होता था मानसिक परेशानी थी वो ठीक हुई। और उसके बाद एक बहुत बड़ा लाभ और है. मेरे हस्बैंड जब रिटायर हो रहे थे आर्मी से तो एक महीना पहले उसको नींद आना बंद हो गया था. बहुत बेचैनी महसूस करते थे. अब ये सर्विस छूटने के बाद मेरा सरकारी जॉब तो लगेगा नहीं. क्या करेंगे हम? बहुत टेंशन में रहते-रहते वो आए यहाँ पे हम आए, रिटायर हो के आ गए. फिर उन्होंने एक दिन हँसते हुए जा के हमसे कोई झगड़ा-लड़ाई कुछ नहीं. हँसते हुए जा के उधर मानसिक परेशानी के कारण उन्होंने वो ले लिया। poison लिया, दो लीटर पोइज़न लिया और वो जो लिया वो उसका हम नाम भी नहीं जानते वो poison कौन सा है? फिर हम उन्होंने ही फोन किया कि मैं ऐसा-ऐसा कर लिया, मैं यहाँ पे हूँ. तो हम मेरे लड़के और उह मेरी घर वाले जा के उनको शुक्ला हॉस्पिटल में एडमिट किए ला के. वहाँ रंगारी करके एक डॉक्टर था उन्होंने दो-तीन दिन इलाज किए उनके. शुरू में तो बोल दिए कि इनके बचने का कोई चांस नहीं है. सुबह से इसने पोइज़न लिया है और आज सात आप एडमिट कर रहे हो. इसके तो पूरा बॉडी में फैल गया है करके. फिर मेरे हमने बहुत रिक्वेस्ट किए आप इलाज तो शुरू करो. तो आप साइन कर दो बोले. उम कुछ होता है तो हम जिम्मेदारी नहीं लेंगे. तो इलाज कराने के लिए हमें साइन भी करना पड़ा. फिर तीन दिन बाद वेंटिलेटर से वेंटिलेटर में रखे थे मेरे हस्बैंड को. तीन दिन बाद थोड़ा होश आया वेंटिलेटर से बाहर आए. तो उन्होंने बताया कि आपके गुरूजी संत रामपाल जी महाराज और कबीर परमात्मा मेरे को दिन भर दर्शन दिन भर दे रहे हैं। इतना ही बोल पा रहे थे, धीरे-धीरे फिर उसका down हो गया वो बोल उतना बता के फिर down हो गया उसका शरीर फिर ventilator में चले गए। फिर डॉक्टर ने बोला हमारे बस की बात नहीं है। यहाँ तो इसका ट्रीटमेंट नहीं हो सकता। इसको आप रायपुर ले जाओ या तो नागपुर ले जाओ फिर हम ले के गए रायपुर। रामकृष्ण केयर में। वहाँ पे लकवे करके कोई डॉक्टर है उन्होंने इनका ट्रीटमेंट शुरू किया। पहले तो उन्होंने ही बोल दिया देख के कि इनका कंडीशन बहुत खराब है। हम कह सकते कि ये ठीक होगा। इसका शव पूरा शरीर में भीन गया है पूरा दवाई इसका इलाज नहीं हो सकता। यहाँ से मुंबई या तो दिल्ली भी ले जाना पड़ेगा. ऐसा बोला फिर हमने वहाँ भी रिक्वेस्ट किया कि इलाज शुरू करें. फिर उन्होंने किया. उसके बाद पंद्रह दिन तक तो वेंटिलेटर में ही थे मेरे हस्बैंड. उसके बाद में परमात्मा को अर्जी लगाए हम लोग. कि मेरे हस्बैंड ऐसे-ऐसे किए हैं. मैं परमात्मा को दंडवत की और जाप करते वहीं पे रहे. फिर सांस आना शुरू हो गया उनका. फिर वेंटिलेटर से बाहर आए वो. डेढ़ महीने बाद मेरे मेरे घर वापस लौट गए। संत रामपाल जी महाराज की दया से. मेरी बेटी है. वो आगरा में हम थे. वहाँ पे इतनी बीमार पड़ती थी. रात-रात भर खांसती थी, सर्दी था. दमा जैसे शिकायत हो गया था. बहुत दिखाया. बच्चों के डॉक्टर को बहुत दिखाया उनको. फिर पंद्रह दिन दवाई खत्म होता फिर ले जाना पड़ता. फिर पंद्रह दिन दवाई खत्म होता फिर ले जाना पड़ता. उसके बाद दीक्षा ली है तब से संत रामपाल जी महाराज ने उसी रात को आए, आशीर्वाद दिए मेरे और मेरी बेटी को अब टेंशन मत लेना बेटा. बोले उसका दिन उस दिन है और आज का अभी तक के साँस वाली परेशानी नहीं हुई मेरी बेटी को। मेरा बेटा है। वो बाथरूम से गिर गया हम अंदर कूलर चालू करके रूम में सोए थे उसको आवाज आया जैसे पानी का टंकी ऊपर से गिरता है ऐसे। बहुत धड़ाम से आवाज आया मैं भाग के आई मेरी बेटी थी मेरे हसबैंड ड्यूटी पे गए थे यहाँ पे तो मैं देखी तो लड़का बेहोश पड़ा था। आवाज खूब दिया। लड़का नहीं सुना फिर ऊपर वाले भैया को बुलाई उठाने के लिए। तब जा के पानी वगैरह ड़ाले तो हल्का होश आया धीरे से अंदर ले के गए। शाम को हमने सिटी स्कैन कराया। तो परमात्मा के उस समय वो लड़का लिया था नाम उसने नामखंड कर दिया था। बाद में बताया उसने मम्मी मैंने ऐसे काम कर दिया था। तो फिर भी परमात्मा ने दया की है उसके सर में एक चोट नहीं आया। ये लाभ हुआ संत रामपाल जी महाराज से जुड़ने के बाद जी और घर में शांति है जी पहले बहुत मानसिक अशांति थी हमारे घर में। अभी बहुत शांति है जी अच्छा से रहते हैं हम लोग। मैं जी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद आपको बहुत सारे लाभ प्राप्त हुए। जैसे कि आपने बताया आपके हसबैंड ने दो लीटर पोइज़न खा लिया था ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है और संत रामपाल जी महाराज ने उनको बचा लिया. ये बहुत बड़ा चमत्कार है. तो जो दर्शक आज आपको देख रहे हैं आप उनके लिए क्या कहना चाहेंगे? धरती पर पूर्ण परमात्मा आए हुए हैं. संत रामपाल जी महाराज के रूप में. मानुष जन्म दुर्लभ है मिले ना बारम्बार. तरवर से पत्ता टूट गिरे बोहर ना लगता डार. आप आए और अपना कल्याण कराएं. संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा कैसे ली जा सकती है? आज अनेकों चैनल पर संत रामपाल जी महाराज के सत्संग चल रहे हैं जी. उसके नीचे एक पट्टी आती है उसमें फोन नंबर है. वहाँ कांटेक्ट आप नाम दीक्षा केंद्र का पता पूछ सकते हो. धन्यवाद जी. दर्शकों अभी आपने सुने संत रामपाल जी महाराज से दीक्षा प्राप्त करके सुखी हुए भक्त के अनुभव. अब देखिए जगत गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन. हमें परमात्मा मिल गए हैं। परमात्मा पाना था हमने इन सिद्धियों से ये तो खिलौने हैं, बच्चे खेलते हैं इनके साथ। तो वो कहता है सिद्ध जो उसका गुरु भाई था, सिद्ध पुरुष का चेला। अब भी सिद्धि हो रहा था। उसने कहा तू अच्छा आदमी है। अरे सिद्धि मैं बताऊँ मुझे क्या उपलब्धि हुई? अभी दिखाता हूँ आपको। दरिया के ऊपर के ऐसे चल पड़ा। जैसे थल पर चलते हैं और प्रलय पार चला गया वापस फिर आ गया देखा मैंने ये सिद्धि प्राप्त कर ली अब उसने माथे बात मारा कबीर पंथी ने बोला बारह वर्ष में तेने दो अन्य की कमाई करी एक अन्य में ये नौका वाला परली साइड में छोड़ देता है एक अन्य उल्टा ले आता है सारे बारह वर्ष में तेने दो अन्य की कमाई करी ये टट्टू साधना प्राप्त हुई थी क्या उपलब्धि हुई तेरी इस बात से वो बड़ा प्रभावित हुआ। फिर बैठ गया उसके पास। सचमुच ये तो नौ काले में बैठ के कोई चला जा ढाई अन्य में। मजदूरी कर लेता अच्छा किते। फिर उसको सारा ज्ञान जो परमेश्वर से प्राप्त था। अब उस भगत ने भगवान थे वो तो गुरु एक संत मानते वो सारा ज्ञान जो परमात्मा से प्राप्त हुआ था अपने गुरु भाई को सुनाया। बड़ा प्रभावित हुआ। अब पुण्य आत्माओं जिसने भगवान पाना है वो बकवाद नहीं करा करते। वो तुरंत समर्पित हो जाते हैं। उसके प्रेरणा जबरदस्ती कि अब मेरा कल्याण के ऊपर होगा। मंदिर डोबलिए सारा जीवन खो दिया। कुछ कृपा करो मेरा भी उद्धार करवा दो महापुरुष से मुझे नाम दिला दो। और फिर वो भगत रोने लग गया जो कबीर पंथी था तब वो सिद्ध जो था सिद्ध। वो कहने लगा आप क्यों रो रहे हो? कहने लगा ओ कबीर पंथी कहता है मैं इसलिए रो रहा हूँ कि आपका कल्याण संभव नहीं। ब्यासी क्या बात होगी? मेरा कल्याण संभव क्यों नहीं? अब वो कबीर पंथी कहता है कि भाई बात सुन। तू और मैं एक गुरु के चेले थे। एक गुरु के शिष्य थे, तू सीनियर था, मैं जूनियर था। वहां सिद्ध के वहां। आकाश आई है। तो भाई वो गुरुदेव तो शरीर छोड़ गए मेरे वाले। जिनसे मुझे ये मार्ग मिला। अब तेरा कल्याण नहीं हो सकता। तो उसने कहा भाई देखो गुरु जी चलो शरीर तो छोड़ गए होंगे पर किसी को आदेश दे गए होंगे मैं उससे ले लूँगा नाम तो कबीरपंथी कहता है कि भाई उससे नाम तो ले नहीं सकता। क्योंकि गुरु को परमात्मा तुल्य मानना पड़ता है। और तू उसको गुरु भी नहीं स्वीकार कर सकता. अब वो सिद्ध पुरुष कहता है कि बात सुनवाई. मैं निकला हूँ भगवान पाने के लिए। और मुझे आप किसी से दिला दो ये ना मैं उसको सर पे रखूँगा। मुझे परमात्मा चाहिए। तब उसने बताया किसने कबीर पंथी ने कि अब इस दास को आदेश दे गए वह और आप मुझे क्योंकि आप मेरे से सीनियर थे वहां पर आश्रम में या जिन जूनियर सीनियर की आग सहारे लाग रही है। ये अभी एक बीड़ी है इस काल की। तो भगत तो एक सत्र में होने चाहिए ऊँच-नीच ना हो पहला पीछा कुछ नहीं होता। एक पिता की संतान है, एक बड़ा बेटा है, एक पंद्रह साल छोटा है तो सह तो एक के पिता के भाई में बहन-भाई है तो ऐसे हो आप तो उसने कहा आप मेरे से नाम ले भी लोगे तो आपका भाव बने नहीं मेरे अंदर क्योंकि आप मेरे से सीनियर थे। चरण पकड़ लिए इन्हें बोला अरे इससे बढ़िया बात और कहाँ होगी? मेरा खुद जो ना गुरु भाई और मेरा गुरु आज से मैं आपका दास, आप मेरे भगवान मने नाम दो। तो नाम दे दिया, दीक्षा दी और दोनों का अपना खूब जैसी साधना की खूब बढ़िया। कल्याण मार्ग पर चले। अब परमात्मा शब्द महल में सिद्ध चौबीसा हंस बिछ छोड़े बिस्वे बिसा अब जिनके पास सिद्धि हो जाती है वो प्रभु पाक जाते है सैकड़ों आदमी प्रशंसक हो जाते है उस महाराज ने यूँ कर दिया उस महाराज ने कर दिया उसका नाश कर दिया वहाँ बैठे ने आग लगा दी यही से काम करा करते अब क्या बताते हैं? शब्द महल में सिद्ध चौबीसा हंसा अब प्रभु पाक गया लाखों लोग, हजारों लोग प्रशंसक हो गए। वो फिर भगवान बन जाता है। तो वो भगवान बन गया तो भगवान तो एक के रहेगा दूसरा बन ही नहीं सकता। तो परमात्मा दूर हो जाता है। कहते हैं ये सिद्धियाँ जो आपके अंदर मान बड़ाई पैदा कर देती हैं, भगवान से दूर कर देती है। हंस को भी छोड़ देती है। बिछड़ जाता है भगवान से। दूर चला जाता। शब्द महल में सिद्ध चौबीसा हंस बिछड़े बिसवे बिसा माने कतीपकम पक्का शत प्रतिशत जीव का नाश करती है भगवान से दूर कर देती है इसे दिया की जो चौधर है एक सिद्धि सुर देव मिलावे एक सीधी मन व्यक्ति बतावे एक सिद्धि हो पवन स्वरूपी एक सीधी होवे अनुरूपी एक सीधी निस्वा सर जागे एक सीधी सेवक हो आगे एक सीध सुरगापुर धाबे एक सीधी सब गट छावे। एक सीधी सब सागर पीवे, एक सीधी। जो बहु युग जीवे एक सीधी जो उड़े आकाशा, एक सीधी परलो के भाषा, एक सीधी कष्ट तन चारा, एक सीधी तनह हंस न्यारा। एक सीधी जल डूब ना जाई, एक सीधी जल पैर न लाई। एक सीधी बहु चोले धारे, एक सीधी। नितत चार है एक सीधी पाँचों तत नीरम, एक सीधी हो बजर शरीरम। एक सिद्धि पीवे नहीं खाई, एक सीधी जो गुप्त छुपाई। एक सीधी ब्रह्मांड चलावे, एक सीधी सब नाद मिलावे। ए ता खेल खिलाड़ी सोहम हंसा पर गटबेले । चोबीसा को ना मन चाहवे, सोहन सा सब अतीत कहावें प्रसिद्धि पूरन पटरानी, सतलोक की कहो निशानी सतलोक सुखसागर पाया, सतगुरु भेद कबीर लिखाया। परम देखो परवाना जन कहता दास गरीब दीवाना अब क्या बताया है कि एक सीधी मन वृत्ति बतावे कि मन के अंदर आपने के सोच रखे हैं तो हम कहते हैं ये सिद्धियां हमें इनकी आवश्यकता नहीं। एक सिद्धि निस्वासर जागे एक सीधी सेवक हो आगे। एक सिद्धि दिन-रात जागने की प्राप्त हो जाती है. और हम भक्ति अध्यात्म ज्ञान से इतने दूर हैं अध्यात्म ज्ञान हीन हैं हम. हम जरा सी भी किसी संत या भक्त में उटपटांग सा देख लेते हैं हम उसके साथ. चिपक जाते हैं प्रभावित हो जाते हैं. एक गाँव है खेड़ी दमकल. गुहाना के पास दास के वहाँ मामा जी हैं तो वहाँ देखा वहाँ कथा सुनी उनकी कि एक डेरा बना हुआ घिसा पंथियों का आदरणीय घीसा साहिब जी को परमेश्वर कबीर देव जी आकर मिले थे। और उन्होंने फिर परमात्मा से प्राप्त ज्ञान को लिपिबद्ध भी किया है कुछ वाणी भी बोली है। उन्हीं का एक शिष्य था। तो उन्होंने उस अपने आदरणीय घीसा दास साहिब जी की शिष्टा हो गया लेकिन वचन नहीं माना उसने। अपने हिसाब से हठयोग करता रहा. नेकी राम नाम था उनका. नेकी राम जी. उसने सिद्धि प्राप्त कर ली हठयोग करके. दिन-रात सोए नहीं. वो उस गाँव में आ के बैठ गया. बनी में. और साधू रूप में एक लंगोट बांध रहा बस नू. अब धूत रूप में बैठ्या. गा के नगर के लोग जाते हैं, देखते हैं कि महाराज तो दिन-रात सोता नहीं। एक ने देखा फिर छुप के देखा देखते रहे दस दिन, बीस दिन, पच्चीस दिन देखा कि सचमुच ये कभी सोता ही नहीं इस बात से प्रभावित हो गए। और बना दिया उसका आश्रम गाड़ दिया लठ। बता नाश होए के हो गया मैं किला टूट गया नाश होन ते ये सिद्धि प्राप्त कर ली इसी से महात्मा पाक गया ना जाने कितनो को और बर्बाद कर गया। तो कहते हैं एक सिद्धि निस्वासर जागे एक सिद्धि सेवक हो आगे। एक ऐसी सिद्धि होती है कि एक समय एक संत ने साधना की। इनके पिछले पुण्य साथ होते हैं वही भक्ति के लिए घर-गाम छोड़ के जाते हैं। बिना ज्ञान के और इनके पिछले पुण्य deposit होते हैं ऊपर। तो ये कोई ऐसी सिद्धि कर लेते हैं तो इन्हीं के पुण्यों से उनको आज servant मिल जाते हैं। आध्यात्मिक servant ये प्रेत रूप में सामने खड़े हो जाते हैं आकर के और इनसे फिर वो अपनी किसी को किसी में प्रवेश करा देते हैं। फिर वो दुखी हैं तो वो कहते हैं वहां लेकर चलो फिर वहां फिर वो ठीक कर देती इस तरह की भी इनके झाड़ फूंक का धंधा चलता है तो कहते हैं एक सीधी सब सागर पीवे, एक सीधी जो बहु युग जीवे एक सिद्धि कष्ट तन जा रहा, एक सीधी तनहस नहीं आ रहा। एक सीधी जल drub ना जाई है, एक सीधी ऐसी है कि जल को ऊपर का चला जा, डूबा नहीं। जैसा भी आपको बताया था, उसने ये सिद्धि कर रखी थी एक सिद्धि ऐसी है कि जल के अंदर प्रवेश करके बाहर आओगे तो सूखे पैर मिलेंगे, जल उनका touch नहीं होता। एक ऐसा ही रोहतक जिले के अंदर अब वो शायद सोनीपत में आ गया, सिसाना गाँव है। रोहतक से सोनीपत रोड खरखोदा साइड में उस शेषना गाँव में योगी साईपंती था वो भी ये सारे उस नेकीराम की ब्रांच बन गई फिर वो आगे थे उसके पास एक सीधी थी के वो तालाब में जाकर के वापस आ जाता है तो पैरों का गारा और जल नहीं लगता. इस सद प्रभु पाक गया. और देखा उड़ा रोड के ऊपर इतना बड़ा आश्रम गाड़ उसका. उसको नारायण महात्मा कहने लगे नाम कुछ और था उसका. तो परमात्मा लास्ट में ये कहते हैं कि एक सीधी बहुत चोलेदार है कई रूप बना लेते है वहाँ भी देख्या वहाँ भी देख्या तो कहते है ये भी व्यर्थ है चौबीस अ शब्द अतीत कहावें प्रसिद्धि पूर्ण पटरानी सतलोक की कहूँ निशानी कहते है उस कबीर परमेश्वर जी के पास वो प्रासिद्धि है प्रासिद्धि माने सब सिद्धियों की माँ यानी पूरा स्टॉक स्टोर अशंक सिद्धि मालिक के पास है. यहाँ इस काल के पास अष्ट सिद्धि है only आठ सिद्धि है। और ये भगवान बता रहे हैं कि हमारा हमने जो आपको मंत्र सतनाम दे रखा है इसमें चौबीस सिद्धियां आ जाएँगी आप में। लेकिन ये आपकी शत्रु होंगी जब प्रयोग करने लागे ते आप जैसे भगत दो-तीन वर्ष आपको नाम लिए हो जाएंगे। और आप किसी को आशीर्वाद देने लग जाओगे ना उसको लाभ होने लग जाएगा आपसे। लेकिन की भक्ति का नाश हो जाएगा। तो ऐसी गलती नहीं करना भूल के भी आप देखते हो कई गाँव में झाड़े लाते हैं उससे कुछ राहत मिल जाती है. वो पिछले जन्म का पुन कर्मी प्राणी है कभी साधना की थी उसने भक्ति और वो कुछ depositive लाला के और फिर वो गधा बनेगा उसका फिर वो किसके झाड़ी लावेगा कुम्हार लावेगा झाड़ी उसके लठ मारेगा कमरे पे. तो पुण्य आत्माओं इस अध्यात्म ज्ञान को समझना पड़ेगा. सब कर्मों से परिचित होना पड़ेगा. जैसे श्रीमद भगवत गीता अध्याय नंबर आठ के श्लोक नंबर एक में अर्जुन ने पूछा कि प्रभु आपने गीता अध्याय नंबर सात के श्लोक नंबर उनतीस में कहा है कि मेरे आश्रित हो के किस बात पे चौथे अध्याय के बत्तीसवें श्लोक में कहा है कि जो तत्व ज्ञान है. की विशेष जानकारी धार्मिक अनुष्ठानों की यज्ञों की विशेष जानकारी सचिदानंद की वाणी में लिपिबद्ध हैं। और पच्चीस से लेकर तीस तक चौथे अध्याय में मंत्रों में बताया है कोई ऐसे करता है, कोई ऐसे करता है, कोई ये साधना करता है, कोई खड़ा हो के तप करता है, कोई हठयोग करता है, कोई देवताओं की पूजा करता है। और कोई सवधा ही करता है, कोई योग अभ्यास करता है, योगासन। कहते हैं वो अपनी-अपनी साधनाओं को पाप नाशक जान के कर रहे हैं। लेकिन इन इस प्रकार की साधनाओं की विशेष जानकारी सच्चिदानंद गणब्रह्म की वाणी में जो परमेश्वर ने स्वयं आकर ज्ञान दिया है। अपने मुख कमल से ब्रह्मणे मुखे और वो तत्व ज्ञान है उसमें विस्तार से लिखी गई है। चौथे अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में कहा है कि उस तत्व ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ उनको दंडवत प्रणाम करने से कपट छोड़कर नम्रता पूर्वक प्रसन्न करने से वो तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्त्व का ज्ञान कराएँगे परमात्मा का अब गीता ज्ञान दाता भी उस परमात्म तत्व के यानी तत्व ज्ञान से अपरिचित है. अब उसने कहा साथ में जा के उनतीस श्लोक में कि जो मुझ पर आश्रित हो के मैं जो कह रहा हूँ इस ज्ञान को आधार बना के तत्वदर्शी संतों से वो मिल लेता है. तो फिर वो क्या होता है कि वो मम मेरे ज्ञान के आश्रित होकर के और जो जरा मरण मोक्ष आए ये जरा माने बुढ़ापा मरण माने मर और बुढ़ापे और मृत्यु के दुःख से बचने का जो प्रयत्न कर रहे हैं उसी के लिए साधना करते हैं। संसार की ओर किसी वस्तु की demand नहीं करते। विवेक तत्व ब्रह्मविधु और अखिल अध्यात्म वो पूरे अध्यात्म को जानते हैं। और सब कर्मों से परिचित हैं। पूरे अध्यात्म ज्ञान से परिचित हैं। और वो तत्व भ्रम से परिचित हैं। वही जरा और मरण के लिए प्रयत्न कर रहे हैं छूटने के लिए। अपने फिर आठवें अध्याय के एक में और ने पूछा फिर कीमत ब्रह्म वो तत्व ब्रह्म क्या है? आठवें अध्याय के तीसरे श्लोक में उत्तर दिया वो परम अक्षर ब्रह्म है। जो गीता ज्ञान दाता स्वयं बता रहा है वही कोई और है। फिर आठवें अध्याय के पाँच और सात मंत्र में। गीता ज्ञान दाता कहता है मेरी भक्ति करनी है। मुझे ही प्राप्त होगा, युद्ध भी करना पड़ेगा। यहाँ शांति नहीं हो सकती। और मेरी साधना करनी है आठवें श्लोक में बताया कि ओम इति एकाक्षरम, ब्रह्म विवाहरण, माँ मनुष्य स्मरण ये पर्याती तन देहम सयाती। प्रणाम गतिम। मौन ब्राह्मण मुझ ब्रह्म का केवल ये ओम एक अक्षर है। उच्चारण करके, सिमरन करता हुआ ये पर्याति तो शरीर छोड़कर जाता है। सयाती प्रभाव से मिलने वाली परम गति यानी ओम से जो कुछ भी सुप्रीम रहा, अंतिम राहत मिलनी है वो प्राप्त हो जाएगी। वो क्या होगी ब्रह्मलोक प्राप्ति होगा? आठवें अध्याय के सोलवे श्लोक में लिखा है कि ब्रह्मलोक पर्यंत भी ये जन पुनरावृति में वहाँ गए हुए प्राणी भी जन्म मृत्यु में आते हैं। यानी पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ। मोक्ष नहीं हुआ तो शांति नहीं हुई, जन्म मृत्यु रहा तो शांति नाम की चीज नहीं। इसलिए गीता आज नंबर आठ के श्लोक नंबर पाँच और सात में अपनी स्थिति बताता है मेरी भक्ति कर ओम नाम ते और मुझे ही प्राप्त होगा और युद्ध भी करना पड़ेगा भाई युद्ध भी कर आठवें अध्याय के आठ, नौ, दस, तीन मंत्रों में श्लोकों में तुरंत पाया कि उस परम अक्षर ब्रह्म की साधना करनी है तो उसको प्राप्त होगा. उसकी भक्ति करनी है तो उसको मिले वो वो मिलेगा आपको और मेरी करेगा तो मेरे पास रहेगा ये नियम है. अंत समय में मैं जिसमें जिसकी भावना रह जाएगी, आस्था रह जाएगी उसी को प्राप्त होगा. उसके लिए उसका बताओगे तत्वदर्शी संत और संकेत बता दिया सत्तरवें अध्याय के तेईसवें श्लोक में गीता जी में उस ब्रह्म में परम अक्षर ब्रह्म को पाने का ओम तत्सत। ये तीन मंत्र की साधना है। ओम तो ब्रह्म का, सर्प पुरुष का जैसे गीता जी दया नंबर पंद्रह के श्लोक नंबर सोलह और सत्रह में तीन पुरुष हैं। तीन पुरुष हैं। सरपुरुष अक्षर पुरुष, परम अक्षर पुरुष। सरपुरुष और अक्षर पुरुष। सरपुरुष तो ये ब्रह्म है। इसका ओम नमः है। ओम तत्सत। तत ये अक्षर पुरस्कार है। ये सांकेतिक है, code word है। और अक्षर पुरस्कार, परम अक्षर पुरस्कार जो है वो सत्य है। ये तत और सत्य सांकेतिक है। code word ये दास बताएगा। इस विश्व में इस दास के अतिरिक्त किसी के पास ये मंत्र नहीं है और इस दास से परिचित हो के उपदेश ले कोई अपने आप संत बन गया नाम देने लग गया वो सबसे बड़ा शत्रु है आपका आप समझदार हो इस बात को खूब समझते हो कि अन अधिकारी से तो आप एक लाइसेंस बनवा के दिखा दो। वो कहीं चलेगा नहीं आप भी अंदर वो भी अंदर लास्ट में जब पकड़े जाओगे पकड़े जब जाओगे जब यहाँ से शरीर छोड़कर जाओगे। तो कोई भी आज इस दास के अतिरिक्त परमात्मा ने किसी के ऊपर ये मेहर नहीं की। हाँ पहले महापुरुष मिले थे जिनको उनको भी ये शरीर सभी नाम दिए थे। उनका कल्याण हुआ लेकिन उनको मना कर दिया था कि अभी इस मंत्र का को disclose ना करना। धर्मदास तो ये लाख दुहाई ये सार नाम की तबार ना जाई सार नाम बार जो पढ़ी ये पिछली पीढ़ी हंस नितर ही अब ये पिछली पीढ़ी आ गई पुण्यात्माओं जहाँ आपका जन्म है। प्रथम पीढ़ी में परमात्मा स्वयं आए थे। प्रथम चरण में कलयुग के अब ये की पीढ़ी है, last की पीढ़ी नास्तिक हो जाएगी बिलकुल जो अपार होगे, सो होगे। ये हजारों वर्ष चलेगा ऐसी बात नहीं है परमात्मा का ये मार्ग एक पूरे विश्व में बहुत शांति होगी। हाहाकारी माया की दौड़ लग रही है या खत्म हो जाएगी। शांति से सब भक्ति करा करेंगे। चोर उचक्के ये सब खत्म हो जाएंगे क्योंकि हम परिचित हो जाएंगे अगर किसी की आज हम चोरी करते हैं अगले जन्म में गधा बन के देना पड़ेगा। कौन समस्या मोल लेगा? अनजान बच्चे हैं। जिनको वही बिजली के एक नंगे तार को छूते हैं। तो गीता जी ने कहा है कि वो ओम तत सत्का तीन मंत्र का जाप है। और वो बतावेगा तत्वदर्शी संत मैं नहीं परिचित उस ते । उसकी भक्ति करनी है तो उसी को प्राप्त होगा उसके लिए तत्वदर्शी संतों ने खोज ले। फिर वो जैसे बताएं तू वैसे कर ले। अब हो ना अर्जुन है मेरा ना वो बतावे। तो अर्जुन आखिर में हार मान ली कि भगवान मांफ किस जैसे कहोगे मैं कर लूंगा कर लेगा ठीक तो वहीं का वहीं रहा। तो कहने का भाव ये है कि हमने उस तत्व ब्रह्म से और इस सारे कृष्णम अध्यात्म त यानी सारे अध्यात्म त और अखिल कर्मों से इन सब कर्मों से परिचित होना पड़ेगा। और उस तत्परम से परिचित कराने के लिए आपको ये तत्व ज्ञान सुनाया जाता है। सत्संग में बुला के अपना आत्माओं सबसे पहले हमने भगवान को पहचानना है। और किस परमात्मा की भक्ति करे यानी किसी से आप जाओ कोई संत है सभी कहते है कि भक्ति कर ले भाई परमात्मा का अब नाम लेना चाहिए फिर नाम क्या है? हरे राम, हरे कृष्ण कृष्ण, कृष्ण हरे हरे, सीता राम राधे श्याम राधे-राधे श्याम मिला दे. बताओ ये नाम दे. कहते है गीता और भागवत पढ़े. ना बुझे शब्द ठिकाने नू गीता पढ़े और गीता में मंत्र के बता रखिया केवल only one ओम। उस परम अक्षर ब्रह्म के पाने का तीन मंत्र का जाप है उससे वो खुद परिचित नहीं। तो गीता जी दया नंबर आठ के, श्लोक नंबर आठ, नौ, दस में कहा है कि वो मंत्र प्राप्त करके फिर उसकी भक्ति करेगा तो उसको प्राप्त होगा, परम अक्षर ब्रह्म को. परम दिव्य पुरुष यानी उस मूल रूपी भगवान जड़ रूपी परमात्मा को प्राप्त हो जाएगा. और उस परमात्मा का जहाँ जाने के बाद लौटकर फिर संसार में कभी प्राणी नहीं आते. गीता ज्ञान दाता अपनी जानकारी दे रहा है. गीता जी राय नंबर चार के श्लोक नंबर पाँच और नौ में. ये कहता है कि अर्जुन तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं. तू नहीं जानता मैं हूँ और श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय नंबर दो के श्लोक नंबर सत्रह में गीता जी अध्याय नंबर दस के श्लोक नंबर दो में कहा कि मेरी उत्पत्ति को ना ये देवता जानते. और ना ये सिद्ध जानते क्योंकि ये सब मेरे से उत्पन्न हुए हैं. मैं इनका आदि कारण हूँ. तो पुण्य आत्माओं संतान अपने पिता की उत्पत्ति को नहीं जान सकता. और पिता की उत्पत्ति को पिता का पिता यानी दादा जी बता सकता है। तो उस परमेश्वर ने स्वयं आकर इस ब्रह्म की उत्पत्ति बताई है। अपना आत्माओं, परमात्मा ने स्वयं आकर के अपना ज्ञान दिया। और हमारे सदग्रंथ भी स्थान-स्थान पर ये प्रमाणित करते हैं। लेकिन उन सद ग्रंथों को हम समझ नहीं सके क्योंकि हमारे पास ये सृष्टि रचना रूपी या मास्टर की नहीं थी या मास्टर चाबी नहीं थी हमारे पास ये सृष्टि रचना जो है पूरे अध्यात्म मार्ग को समझने की एक मास्टर की समझो और जब तक ये नहीं समझ में आओ कि इतने हम किसी सदग्रंथ को नहीं समझ सकते. अब जैसे गीता ज्ञान दाता कहता है कि मेरी उत्पत्ति को ये ऋषि और ये देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये नहीं जानते क्योंकि ये मुझसे उत्पन्न हुए हैं। दसवें अध्याय के दूसरे श्लोक में गीता जी ने कहा तो इससे सिद्ध हो गया कि गीता ज्ञान दाता नाशवान है. इसका जन्म मृत्यु होता है. ये भ्रम है। श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके ब्रह्म बोल रहा है। गीता जी दहन नंबर आठ के श्लोक नंबर तेरह में ये खुद कहता है कि ओम ईति एकाक्षरम ब्रह्म विवरण, माँ मनु स्मरण ये पर्याति तजुर्बे हम सयाती परमाम गति अपनात्माओ इस पूर्ण अध्यात्म ज्ञान से परिचित कराना आपको दास का उद्देश्य है। और यही सद ग्रंथ बताते है कि जब तक उससे पूर्ण परिचित नहीं होते तो तुम भक्ति पर नहीं लग सकते। गीता जी नंबर दो के श्लोक नंबर तिरेपन में कहा कि अर्जुन जिस समय तेरी बुद्धि भिन्न-भिन्न प्रकार के वर्मित करने वाले वचनों से हटकर एक परमात्म तत्वों के उस तत्व ज्ञान के ऊपर आश्रित हो जा कि यानी दृढ़ हो जाएगा तब तो तू योग को प्राप्त होगा. तब तो तू भक्ति प्रारंभ करेगा स्टार्ट होएगी तेरी भक्ति. जब दृढ़ भक्त बनेगा. तो आपको दृढ़भक्त बनाने के लिए. अध्यात्म ज्ञान यानी संपूर्ण दातम ज्ञान आपके रूबरू करा जा रहा है। अब देखिए थोड़ा-सा लिंक इससे संबंधित हो गया श्री शिव पुराण गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संपादक हनुमान प्रसाद पोदार इसके छब्बीस पृष्ठ पे दिखाते हैं आपको। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी का इस बात पे झगड़ा हो गया विध्वेश और संहिता ही वो कहता है मैं तेरा बाप, वो कहता मैं तेरा बाप। ये चौबीस तो इनके एक युद्ध को समाप्त करने के लिए इस काल ब्रह्म ने जो एक अपने वास्तविक रूप में प्रकट नहीं होता। इनके बीच में एक स्तंभ खड़ा कर दिया पिलर लिंग इसको। बाद में शिवलिंग कहने लग गए। फिर ये युद्ध करके खड़े हो गए। फिर वो खुद आ के प्रकट हो गया शिव रूप में। यानी सदाशिव रूप में ब्रह्मा, विष्णु को मिला था, शिव रूप में प्रकट हो जाता है। ये ऐसे लीला करता है। अब पच्चीस नंबर पृष्ठ पे आपको दिखाते हैं। यहाँ से थोड़ा-सा लिंक है इसका गीता प्रेस गोरखपुर से है विदेश और संहिता। ब्रह्मा और विष्णु ने पूछा प्रभु सृष्टि आदि पाँच कृत्यों के लक्षण क्या हैं? ये हम दोनों को बताइए शिव भगवान शिव बोले ये काल प्रकट हो गया ब्रह्म, शिव रूप में। इनको धोखा देने के लिए। मेरे कर्तव्यों को समझना अत्यंत गहन है. तथापि में. कृपा पूर्वक तुम्हें उनके विषय में बता रहा हूँ. सुनो. आगे बताते हैं. ये छब्बीस पृष्ठ है। ब्रह्मा और विष्णु को कहता है ये काल ब्रह्म पुत्रों तुम दोनों ने तपस्या करके प्रसन्न हुए मुझ परमेश्वर से। अब परमात्मा कहते हैं ये ज्योत स्वरूपी के निरंजन में ही करता भाई। ये अपने आप परमेश्वर कह रहा है यहाँ पर। मुझ परमेश्वर से सृष्टि और स्थिति नामक दो कृत प्राप्त किए हैं। ये दोनों तुम्हें बहुत प्रिय, इसी प्रकार मेरी विभूति रूप स्वरूप यानी मेरे जैसी शक्ल के रूद्र और मैं नहीं है नेह दो अन्य उत्तम कृत संहार और तिरोभाव मुझसे प्राप्त किए है. परंतु अनुग्रह नामक अर्थ कोई दूसरा नहीं प्राप्त कर सकता. आगे देखो ऐसे सिद्ध हो गया कि यहाँ ये पुराण का वक्ता जो है पुराण जो बोलने वाला है ये ब्रह्मा, विष्णु से और रूद्र और महेश से न्यारा है. ये भ्रम है, ये काल है. यहाँ देखिए ये क्या कहता है? इस हम छब्बीस पढ़ रहे हैं। शिक्षण शिव शिव पुराण विद्वेश्वर संहिता ये देखो मैंने पूर्व काल में अपने स्वरूप भूत मंत्र का उपदेश किया है। जो ओंकार के रूप में प्रसिद्ध है। वह मंगलकारी मंत्र है। सबसे पहले मेरे मुख से ओंकार यानी ओम प्रकट हुआ। जो मेरे रूप का बोध कराने वाला है। ओंकार वाचक है मैं वाचक हूँ यह मंत्र मेरा स्वरूप ही है। प्रति ओंकार का निरंतर स्मरण करने से मेरा ही स्मरण होता है। मेरे उत्तरवर्ती मुख से आकार का पश्चिम मुख से उंकार का, दक्षिण मुख से मक्कार का और पूर्ववर्ती मुख से बिंदु का तथा मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ। ये पांच है। एक तो पश्चिम वाले मुक्त है। एक एक तो उत्तर वाले मुक्त है। एक पश्चिम काले मुक्त दो तीन और चार और पांचवा बिंदु। ये मध्यम उत्तर वाले मुख से बिंदु और ये पाँचवा ये नाद तो इस प्रकार ये पाँच हो गए आकार, हुंकार और मकार और बिंदु और नाथ ये पाँच हो गए। इस प्रकार पाँच ऐवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ। इन सभी एवंों से एक ही भूत होकर यह प्रणव ओम नामक एक अक्षर हो गया और ये मेरा है। ये कहता है ये मेरा मंत्र है ओम एक अक्षर ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश से अलग है ये काल ब्रह्म बोल रहा है शिव रूप में खड़ा होकर के इन्होंने ये नीचे लिखा है कि ओम नमः शिवाय ये पाँच अक्षर का मंत्र है ये गलत लिखा है। मूल संस्कृत में कहीं नहीं है। अब हमने ये देखना है कि ये जो ओंकार नाम जिसका ओम मंत्र है ये ब्रह्म है, ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश से अलग है, ये कृष्ण के अंदर प्रवेश कर के श्री कृष्ण में बोल रहा है गीता जी को, ये यहाँ भी ये कह रहा है मेरा कोम मंत्र है. अब इससे ये स्पष्ट हो गया. कि गीता जी का ज्ञान ये काल बोल रहा है. और श्री कृष्ण में प्रवेश होकर बोल रहा है. और ये कह रहा है कि मेरा तो एक ओम अक्षर है. ओम इति एक अक्षरम, ब्रह्म विवरण मांस अनुसमरण ये प्रिया तीन मुझ ब्रह्म का एक ओम अक्षर है. एक अक्षर है nothing else. तो इस प्रकार जो अन्य साधनाएं बताते हैं, इस मंत्र को छोड़ के कहते हैं गीता और भागवत पढ़ें, ना बुझे सब देखें नू गीता और भागवत पढ़ें, गीता में कहीं लिखा है हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, हरे राम, हरे राम लिख रखा है कहीं. फिर गीता जी को पढ़ किस लिए रहे हो? परलोक वेद को आधार बनाए हुए अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हो। हमने अपने पुण्य सदग्रंथों को पुनः संभालना पड़ेगा इन्हें। गीता जी अध्याय नंबर सोलह के श्लोक नंबर तेईस और चौबीस में concept clear कर दिया। शास्त्र विधि को त्याग कर जो मनमाना आचरण करते हैं। उनको ना तो सुख होता है ना गति होती है और ना उनको कोई सिद्धि यानी प्राप्त होती है क्योंकि सिद्धि हमें सतलोक ले के जाएगी हमने उसको दुरुपयोग नहीं करना। तो उसको कोई सिद्धि नहीं प्राप्त होती है उनका कार्य जो उद्देश्य लेकर आया है वो सिद्ध नहीं हो पाता। और चौबीसवें श्लोक में कहा इस से तेरे लिए अर्जुन करते और अकर्तव्यों की व्यवस्था में। शास्त्र ही प्रमाण है। किसी की दंतकथा पर मत विश्वास करना। जो सदग्रंथों में लिखा है वही मानना आज पुण्यात्माओं जो हमारे सदग्रंथ बता रहे हैं हमने इस अनुसार साधना करनी पड़ेगी. अब हमारे सदग्रंथ क्या बताते हैं? परमात्मा कहते हैं सबसे पहले हमें एक complete जो सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान से परिचित होना पड़ेगा। और तत्व ब्रह्म से परिचित होना पड़ेगा। वो कौन है? कैसा है? और कहाँ रहता है? ऋग्वेद मंडल नंबर नौ, सुक्त नंबर छियासी के मंत्र छब्बीस, सत्ताईस में। ऋग्वेद मंडल नंबर नौ. सुक्त बयासी के मंत्र एक, दो, तीन में. ऋग्वेद मंडल नंबर नौ, सूक्त छियानबे के मंत्र सोलह से लेकर बीस तक. और भी अनेक स्थानों पर, ऋग्वेद मंडल नंबर नौ, सुक्त नंबर एक, और मंत्र नंबर आठ, नौ में ये स्पष्ट किया हुआ है परमात्मा कैसी लीला करता है? तो हमने सबसे पहले परमात्मा को पहचानना है. कि वो परमात्मा कौन है और कैसी लीला करता है? आज से छह सौ वर्ष पहले परमेश्वर कबीर देव जी वो परम अक्षर ब्रह्म जैसा कि वो तीन स्थिति से अपनी लीला करता है. उनमें से जो एक लीला का उनका वे है, तरीका है. एक बालक रूप धारण करके प्रकट होते हैं. सन तेरह सौ अठानवे सम्वत चौदह सौ पचपन. और ज्येष्ठ शुद्धि पूर्णमासी यानी जेठ उत्तर दे की पुनवासी उस पूर्णमासी को, पूर्णिमा को, परमात्मा सतलोक से चलकर गति करके आए। और वहां प्रगट हुई। अपना आत्माओं साथ के साथ आपको सद ग्रंथों से परिचित कराना अनिवार्य है, दास का ये कर्तव्य बनता है। आपको शिक्षा इसलिए परमात्मा ने दिलाई है कि आप परमात्मा पहचान लो। ना इस रोजी रोटी इस शिक्षा की कतई जरूरत नहीं थी पहले हमारे पूर्वज थे अपना simple way से कच्ची झोपड़ी डालकर मकानों में गुजारा करते थे बीस-बीस दस-दस पीढ़ी ऐसे पार हो गई निकल गई यहाँ से टाइम पास करके और जब से ये शिक्षा मिली है हमें इस भौतिक सुख तो पर दुख टेंशन बिना गिनती की होगी। अब इसको देना अनिवार्य था नहीं पहले परमात्मा ने ये विष आपके ऊपर नहीं आने दिया। अब इसलिए ये शिक्षा आपको इसको बहुत अच्छा मानते हैं लेकिन अच्छा ये इस दृष्टिकोण से तो अच्छा है कि हम भगवान पहचान लेंगे अब। बस और बाकी डॉक्टर बन गए इंजीनियर बन गए। हैं और कोई आईएस, आईपीएस बन गए। ये तो पेट का रोला है सारा। इसकी जरूरत हमने नहीं थी अपना दो रोटी चाहिए थी आराम से और simple वैसे रहता है वो जीव सुखी है इन कोई भी सुखी नहीं प्राणी चाहे कितना या बड़ा अफसर हो अधिकारी हो चाहे मंत्री हो चाहे मुख्यमंत्री हो वो सुख नाम की चीज नहीं उनके पास क्योंकि हमें पता नहीं परमात्मा ने हमें बताया कि इक्कीस ब्रह्मांड में सुख नाम की चीज नहीं है कि जब भूला करी हो तुम्हारे लेकिन ये शिक्षा जो मिली है इसका उद्देश्य ये है कि हम भगवान पहचान लेंगे अपना पीछा छुटवा लेंगे और वहाँ से जाओगे जहाँ जरा और मरण नहीं होता वहाँ वृद्ध अवस्था नहीं होती वहाँ पर मृत्यु नहीं होती। अभी आपने सुने संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन आइए अब सुनते हैं संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सत भक्ति करके अद्भुत लाभ प्राप्त करने वाले अनुयायी के विचार। दर्शकों ये कहानी है उड़ीसा के संबलपुर जिले की हेमांगिनी जी की। जिन्होंने हिंदू धर्म में प्रचलित सभी साधनाओं के साथ-साथ ब्रह्माकुमारी पं भक्ति साधनाएँ पूरे मन से की परंतु ऐसा क्या हुआ जो इन्होंने ब्रह्माकुमारी पंथ की साधनाएँ त्याग कर संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण की क्या इन्हें उन सभी सवालों के जवाब मिले जिनको जानने के लिए इन्होंने अपना आध्यात्मिक सफर शुरू किया था आइए अब सुनते हैं हिमांगिनी जी की सच्ची कहानी उन्हीं की जुबानी नमस्कार जी नमस्ते जी क्या नाम है जी आपका? हेमागिनी भुई मांगनी आप कहाँ से हैं? जी मैं संबलपुर जिला से हूँ और उड़ीसा राज्य का है। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा आपने कब ली? जी मैं दो हजार बारह जनवरी दो तारीख को संत रामपाल जी महाराज जी से। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने से पहले आप क्या भक्ति साधनाएं करती थी? जी जो आम जो चलती थी घर में जो सिखाते थे मम्मी-पापा सिखाए थे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश दुर्गा जी इनकी भक्ति करती। जब मैं उनसे दुखी हो गई जी फिर मैंने ब्रह्मकुमारी ज्वाइन कर रखी थी दो हजार ग्यारह में। छह महीने में ब्रह्मकुमारी की मैं सेंटर जाती थी जी तो वहां मैं दुखी हो गई क्योंकि छह महीने के बाद जब मैं वो समझ में आया conglosion ये मिला में जो मुरली आती है उसमें ये पन मुझे पता चला कि हम ब्रह्माकुमारी में अच्छे गुण भर्ती करेंगे अपने अंदर और हम सत्य युग में जन्म लेंगे. मैं लेकिन मेरा ये एम था कि मैं जन्म मृत्यु से कैसे छुटकारा मिले? मुझे सच्चा परमात्मा का भक्ति कैसे मिले? मेरा यही खुश था. फिर मैंने अ बहुत दुखी हो गई. फिर मैं छह महीने के बाद इसको रिन्यू कर लिया. फिर मैंने टीवी के जरिए ढूंढतेल ड़ने लगी कि कहाँ है परमात्मा के ज्ञान कहाँ है? कहाँ मिलेगा मुझे? मुक्ति कहाँ मिलेगी? अगर मैं अम्म ये ब्रह्माकुमारी join कर दी तो फिर मैं मुझे सत्य युग में जन्म लेना पड़ता। फिर मैं क्या की? हर टीवी चैनल में रविशंकर जी हो गए। जितने गुरु रहे सभी का मैंने सत्संग देखा। मैं मुझे ढूंढना ये था कि भक्ति मार्ग सही कौन सा है? जो मुझे नहीं मिल रहा है। फिर मुझे परमात्मा की दया से संत रामपाल जी महाराज जी की दया से उनका मैंने देखा सत्संग जो कि वो वेद, गीता उठा के दिखा रहे थे। फिर मैंने भी हमारे मेरे पापा को गिफ्ट मिला था एक गीता। मैं उठा के लाई। जो संत राम महाराज जी ज्ञान दे रहे थे तो फिर मैंने टली किया वो ही सही का सही मिला मुझे जो भी लिखा है जो कुछ भी लिखा है ज्ञान सारा सही का सही पाया फिर मुझे पता चला कि नहीं ये तो हर धर्म के निचोड़ दे रहे है हर धर्म हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सारे धर्मग्रंथ जैसे कि बाइबिल, गुरुग्रंथ साहेब और कुरान शरीफ, गीता वेद, संत रामपाल जी महाराज जी वो सारा ज्ञान दिखा रहे थे फिर मैं मेरा विश्वास बढ़ गया जब मैं टेली करने लगी सारा निचोड़ दिखाया मैंने ये सारा समझ गई मैं कबीर ही भगवान है। कबीर अल्लाह परमात्मा है जो संसार सारा उसके पीछे और किसी के कहीं भाग रहे हैं जबकि परमात्मा है कभी परमात्मा. जो कि संत रामपाल जी हमारे जो ज्ञान दे रहे हैं. सारा शास्त्र में कुल साधना है. तो मैं इस तरह अ नाम दीक्षा लेने के लिए अ मैंने अपने मन ही मन ठान लिया. जब मेरे पास कुछ नहीं था. क्योंकि मैं पापा के घर में रहती थी. क्योंकि दो हजार दस में मेरी शादी हुई थी. तो दो हजार ग्यारह अंदर मेरा एक बच्चा भी पैदा हुआ था एक-दो दिन जिन्दा रहा था उसका डेथ हो गया उसके बाद पति का डेथ हो गया था एक साल के अंदर फिर मैं दुखी हो गई थी इसी वजह से मैं इस शहर में ढूंढ रही थी ढूंढ रही थी भगवान कहाँ है कहाँ है बोल के जब मैंने एक किताब देखा मेरी सत्संग सुनी वहाँ पे एक पीली पट्टी थी पीली पट्टी में नंबर लिखा था मैंने हमने अपने एड्रेस भरा मम्मी के नाम से मेरे नाम से भाई के नाम से मेरे चार एड्रेस मैंने भरा था तो उसमें तब दो हजार ग्यारह की बात है तब आई थी किताब भक्ति सौदागर को संदेश उस किताब को पढ़ के मुझे ये चला कि नामदान कुछ चीज है नामदान कुछ लेना पड़ेगा फिर मैंने ठान लिया कि नहीं मुझे जाना है बरवाला वहाँ से मुझे नाम लेना है फिर संत रामपाल जी महाराज जी की दया हुई जॉब मिलने के बाद और फिर मैंने पापा को दिया था पापा टिकट कटा लो अच्छे लगे नाम लेने के लिए ऊपर वाले जा के हमने संत रामपाल जी हमारे से नाम दीक्षा लिए संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद क्या आपका कोई लाभ भी मिले? जी संत रामपाल जी महाराज जी से नाम ले के उनको विशेष विशेष बहुत लाभ मिला मानसिक तरीके से फाइनेंसियली कंडीशन सारा ठीक हो गया और मेरी जितनी बीमारी थी मैं की बीमारी हूँ मैं बचपन से ही मुझे खून चढ़ता था हर साल में एक दो बार चढ़ जाता था और मुझे इस sequence में जो problem होता है जैसे कि ये कोहनी में गठिया जितना दर्द होता है और जो बंदा रहता है चल नहीं पाता है काम कोई कुछ कर नहीं पाता है जैसे कि मैं थी बहुत बीमार थी पहले संत रामपाल जी महाराज जी की दया से जो सिकिल सेल की बीमारी थी मेरी तो पहले क्या होता था गठियाबाद जितना भी मतलब दर्द होता था सारा कुछ और अह मुझे ब्रॉड चढ़ता था हर साल में एक दो बार चढ़ता था ब्लड वो सारा कुछ बंद हो गया उसने डॉक्टर ने बोल रखा था कि आजीवन ये आपको दवाई पड़ेगी अगर जरूरत पड़ी तो आपको ब्लड भी चढ़ेगा. ये लाइलाज बीमारी है और संत रामपाल जी महाराज जी की दया से अब मैं स्वस्थ हूँ. और एक नॉर्मल लाइफ जी रही हूँ. मेरे रिपोर्ट हैं सारे आप देख सकते हैं कि मुझे सीकिल सेल था वो भी डिजीज था जो कि बहुत अ जो रहता है सबसे डीजीज बोलते हैं. एक ट्रेड रहता है, हल्का सा रहता है और जो डिजीज रहता है, बहुत ज्यादा गंभीर रहता है. वो डीजी चाहिए मुझे. और मैं नॉर्मल जिंदगी जी रही हूँ. आप पता कर सकते हैं. सारी रिपोर्ट है मेरे पास. अभी मैं नॉर्मल लाइफ जी रही हूँ. संत रामपाल जी की दया से लाभ जैसे कि बहुत बार ऐसा हुआ. मेरी नौकरी जाने वाली थी. मैं पंचायत राज डिपार्टमेंट में काम करती हूँ. ये गवर्नमेंट जूनियर इंजीनियर हूँ. बात होता क्या है कि हम बीस-पच्चीस दिन रुक गए थे उधर. हम सत्संग सुनने गए थे. तभी क्या हुआ जब मेरे आने के बाद तभी मेरी जॉब कांट्रेचुअल थी. दो हजार चौदह की बात कर रही हूँ. दो हजार चौदह नवंबर अठारह तो मैं आई थी पच्चीस तारीख को मैं लौट आई थी उड़ीसा. तो फिर मैं वही नॉर्मल जॉब ज्वाइन की मैंने. जॉब ज्वाइन करने के बाद कोई एक शब्द भी मुझे नहीं बोला कि दैट कि क्यों तुम पच्चीस दिन नहीं थी बोल के? ये है परमात्मा संत रामपाल जी महाराज जी का चमत्कार और ऐसे सैकड़ों बार मुझे बचाए भगवान ने हर एक्सीडेंट से, हर जगह से ऑफिशियल में बहुत भी प्रॉब्लम जो भी होता है माली ऐसे परमात्मा संत रामपाल जी महाराज जी ऐसे सुलझा देते हैं, ऐसे पता भी नहीं चलता. सारा प्रॉब्लम का हल ही ऑटोमेटिक कर देते हैं. संत रामपाल जी महाराज जी. उनका मंत्र में बहुत शक्ति है. परमात्मा की दया से संत रामपाल जी महाराज दया से दो हजार सत्रह में प्रोमोशन हुआ है. रेगुलर हुआ हुआ है अभी. पहले कांट्रोचुअल था जी. अब शारीरिक रूप से ठीक हूँ और मेरा मानसिक जो बीमारी था. मतलब मैं असंतुलन था. जैसे कि मुझे जितना दुःख था सारे मेरे मुझे पता चला. मैं कौन हूँ? मैं कहाँ हूँ? मुझे कहाँ जानी चाहिए? मेरे लाइफ जिंदगी का एम क्या है? मैं जिंदगी का मेरी जिंदगी का जीने का मकसद क्या है मुझे मिला नहीं था. जब संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान मिला तब मुझे पता चला कि जीने का मकसद होना क्या चाहिए? भक्ति कैसे करनी चाहिए? क्या होनी चाहिए? जिंदगी में? जरूरी. टीवी पर आज जो दर्शक आपको देख रहे हैं अगर वो परेशान हैं, दुखी हैं. और संत रामपाल जी हमारे से दीक्षा लेना चाहते हैं तो कैसे ले सकते हैं? मानव समाज से मेरा यही अनुरोध है कि आप संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान सुने. देखिए आजकल वो आप टीवी में आता है. आपको उनका किताब मंगा सकते हैं. उनका साइट देखिए, गूगल पर सर्च करिए, डब्लू डब्लू डॉट जगतगुरु रामपाल जी डॉट ओआरजी. आप यूट्यूब पे यूट्यूब पे देख सकते हैं सतलोक आश्रम. आप देखिए उनका ज्ञान सुनिए. अपने शास्त्रों से आपने जो घर में जो जो भी रखा है आपने गीता वेद या कोरु ग्रंथ साहेब किसी भी धर्म के हो आप. आप उसे मिलाप कराइए कि आप बता रहे हैं ज्ञान. आप एक बार ज्ञान सुनिए. और उनसे जुड़िए. जल्दी से जल्द उनसे जुड़िए. संत रामपाल जी महाराज जी खुद पूर्ण परमात्मा क्या अवतार हैं? वो संत राम कोई मामूली इंसान नहीं वो भगवान है। नाम दीक्षा आप देखिए पीली-पीट्टी आती है सत्संग के दौरान या फिर आप नेट पर सर्च करें, गूगल पर डब्लू डब्लू डॉट जगत रामपाल जी डॉट ओआरजी आप वहाँ पे नंबर भी वगैरा मिलेगा, आप कांटेक्ट करिए, आपको नजदीकी जिले हर स्टेट में आपको नामदान केंद्र मिलेगा। आप वहाँ पे कांटेक्ट करें नंबर पे आप नजदीकी नाम दान केंद्र का पता चल जाएगा। आप जुड़ सकते हैं easily. धन्यवाद जी, नमस्ते जी संत रामपाल जी महाराज। एक ऐसे महान संत जिन्होंने अपने भक्ति, तत्व ज्ञान, करुणा और सेवा के बल पर समाज में नई मिसाल कायम की है. संत रामपाल जी महाराज की अगुवाई में उनके सभी सतलोक आश्रमों से समाज कल्याण के अद्भुत कार्यों ने समाज को सुनहरे भविष्य की एक नई उम्मीद दिखाई है. संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद लाखों लोगों की लाइलाज बीमारियां. जैसे कैंसर, एड्स आदि ठीक हुई. संत जी के ज्ञान से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने लाखों unit रक्तदान किया संत जी ने लाखों बहन बेटियों का दहेज मुक्त विवाह करवाया संत जी ने लाखों लोगों का नशा छुड़वाया करोड़ों उजड़े परिवार बसे. संत जी के आश्रमों में समागम के दौरान निःशुल्क नेत्र चिकित्सा, दन्त चिकित्सा प्रदान की जाती है. संत रामपाल जी महाराज द्वारा समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से बड़े स्तर पर वृक्षारोपण किया जाता है. संत जी ने ज़रूरतमंदों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिए एम्बुलेंस सेवा शुरू की संत जी अपने अनुयायियों को देहदान के लिए प्रेरित करते हैं. जिससे मानवता की सेवा और चिकित्सा क्षेत्र में सुधार हो सके. संत रामपाल जी महाराज के सभी आश्रमों में हर रोज़ निशुल्क भंडारा आयोजित किया जाता है. जहाँ हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं. संत रामपाल जी महाराज के आश्रम में हजारों बुजुर्गों को सम्मान और प्यार के साथ जीवन जीने का अवसर मिलता है. उनके खाने, रहने और स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी. संत रामपाल जी महाराज उठाते हैं. अनाथ बच्चों के लिए. संत रामपाल जी महाराज के सभी आश्रम किसी वरदान से कम नहीं. यहाँ उन्हें शिक्षा, संस्कार और भविष्य के लिए बेहतर अवसर प्रदान किए जाते हैं. चाहे बाढ़ हो, भूकंप या महामारी. संत रामपाल जी और उनके अनुयायी हमेशा ही जरूरतमंदों के लिए सबसे आगे खड़े रहते हैं. कोविड महामारी के दौरान संत रामपाल जी महाराज के आश्रमों से करोड़ों लोगों के लिए भोजन, दवाईयां और जीवन रक्षक सामग्रियां उपलब्ध कराई गई. चाहे गरीब की मदद हो या किसी शोषित और पीड़ित वर्ग के हक और सम्मान की लड़ाई. संत रामपाल जी महाराज ने हमेशा ही उनकी दबी आवाज को सरकारों तक पहुँचाया है. और उन्हें न्याय दिलवाने में अहम भूमिका अदा की है समाज में आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों के प्रति जागरूकता लाने में संत Rampal जी महाराज हर कदम पर मानवता के सच्चे सेवक साबित हुए है संत Rampal जी महाराज का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा वही है जो निस्वार्थ भाव से की जाए आइए हम भी इस महान सेवा के कार्य में इस महान संत से जुड़ेंगे और संत Rampal जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन को ने बनाया आप सुन रहे थे जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन। अधिक जानकारी के लिए visit कीजिए हमारी वेबसाइट डब्लू डब्लू डब्लू डॉट जगतगुरु रामपाल जी डॉट ओआरजी संत रामपाल जी महाराज जी के शुभ आशीर्वाद से पूरे विश्व भर में पाँच सौ से भी ज्यादा नाम दीक्षा केंद्र हैं जिन पर संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा ऑनलाइन निशुल्क नाम दीक्षा दी जा रही है। अपने नजदीकी नाम दीक्षा केंद्र का पता करने के लिए संपर्क करें। eight two two two, eight, eight, zero, five, four, one.